नेकी कर दरीया में डाल - Lentils do good in river
दोस्तो, आज मैं आपको एक अपनी लिखी हुई कविता से रूबरू करवाता हूँ। यह कविता मेने साल नवम्बर 14, 2000 में लिखी थी। उस दिन पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म दिन था और संयोगवश दिपावली भी उस दिन थी। और उस रात मैं अपने घर की छत पर बैठ कर जगमगाती रौशनी का लुत्फ़ उठा रहा था कि मेरा मन कुछ उदास था उसदिन। अचानक मुझे यह कविता सूझी। मेरी कविता का शीर्षक है " रौशनी " जग मग - जग मग जुगनू जैसी। चाँद की हो रौशनी।। रंग - बिरंगे फूलोँ जैसी। तारों की हो रौशनी।। मन को भाए - सब को भाए। किन दीपों की हो रौशनी।। कभी तो हसाए - कभी तो रुलाए। जाने कैसी हो तुम रौशनी ।। अगर आप को यह कविता अच्छी लगी तो कृपया अपने विचार लिखें।
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