Skip to main content

बदलते रिश्ते - The Changing Relations

बदलते रिश्तेएक कड़वा सच जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगा।

जी हाँ, यह  सिर्फ मेरी नहीं बल्कि हम सब की है।  और जहाँ तक मेरा ख्याल है, ऐसा सिर्फ भारत में ही होता है। 

क्या कभी आपने सोचा है कि आपके परिवार वाले भी आपके खिलाफ साज़िश कर सकते है।  मैं दावे के साथ कह सकता हूँ के नहीं। 

पर यह सब सच है - एक कड़वा सच जो आपकी ज़िन्दगी बदल देगा और सोचने पर मज़बूर कर देगा कि क्या यही ज़िन्दगी है। 

मैं हर वख्त दूसरों के बारे में ही सोचता रहा और अपनी ज़िन्दगी बर्बाद कर ली। पर सब यही कहते हैं की तूने किया है।  लोग दूसरों का दिमाग तो पढ़ लेते हैं पर मेरा दिल कोई नहीं पढ़ पाया। 


अब तो मेरा दिल बस यही कहता है कि :-

पंछिओं को आसमान से गिरते देखा है,
अपनों के हाथों से अपनों को गिराते देखा है। 
*-*-*
लोग बेदर्द है जो अपने दिमाग से सोचते हैं,
उम्र गुज़ार दी दिल से सोचते - सोचते,
पर अफ़सोस, 
मेने अपने रिश्तों को फिर भी बदलते देखा है। 
*-*-*
क्या ये ही ज़िन्दगी है, 
कि लोग एक पल में साथ छोड़ देते हैं,
बीच सफर में अपने हाथ छोड़ देते हैं,
ज़िंदगी का तो पता नहीं, 
मेने मौत को साथ निभाते देखा है। 
*-*-*
उम्मीदों को पलते देखा है, 
और सपनो को करवटें बदलते देखा है,
लोगों के साथ का तो पता नहीं,
मेने अपनों का हाथ छुट्टे देखा है। 
*-*-*
लोग श्मशान में भी बिना चप्लों के जाते हैं,
मेने मंदिर की सीढ़ियों पे चप्लों को देखा है। 
दूसरों की लाशों को कंधों पर उठाते हैं,
मेने ज़िंदा इंसानों को ज़मीन पर गिराते देखा है।


दोस्तों, यह है मेरी कहानी सच्ची और कड़वी ज़िन्दगी। अगर आप के पास भी ऐसी कोई सच्ची यादें हैं तो जरूर शेयर कीजिये।

Comments

Popular posts from this blog

रौशनी - The Light

दोस्तो, आज मैं आपको एक अपनी लिखी हुई कविता से रूबरू करवाता हूँ।  यह कविता मेने साल नवम्बर 14, 2000 में लिखी थी।  उस दिन पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म दिन था और संयोगवश दिपावली भी उस दिन थी। और उस रात मैं अपने घर की छत पर बैठ कर जगमगाती रौशनी का लुत्फ़ उठा रहा था कि  मेरा मन कुछ उदास था उसदिन। अचानक मुझे यह कविता सूझी।   मेरी कविता का शीर्षक है " रौशनी " जग मग - जग मग जुगनू  जैसी।  चाँद की हो रौशनी।। रंग - बिरंगे फूलोँ जैसी। तारों की हो रौशनी।। मन को भाए - सब  को भाए।  किन दीपों की हो रौशनी।। कभी तो हसाए - कभी तो रुलाए।  जाने कैसी हो तुम रौशनी ।। अगर आप को यह कविता अच्छी लगी तो कृपया अपने विचार लिखें। 

सच की कलम से - By the Pen of Truth

सच की कलम से , सुनने में तो अच्छा लगता है, पर  क्या कलम सच बोलती है? जरा सोचिए और बताइए क्या सच में कलम सच बोलती है?  आज कल तो कलम वही लिखती है जो उससे लिखवाया जाता है। और वो ही लिखती है जिससे उसको लिखवाने वाले को कुछ फायदा होता है।  क्यों मैं सच कह रहा हूँ ना? अगर हाँ तो अपने विचार मेरे साथ शेयर जरूर करें।  क्योंकि इस मुद्दे पर आपकी छोटी सी टिप्णी बहुत गहरा प्रभाव दाल सकती है। विश्वास कीजिए।  कलम बैचारी कुर्सी की मारी। शायद ये मोहावरा तो आपने सुना ही होगा। हाँ थोड़ा सा हटके जरूर है पर करता तो कलम की मजबूरी को ब्यान ही है ना।  आप को नहीं लगता के कलम अब ग़लत  हाथों में है ?  अगर आप मेरे सवालों से इत्तेफ़ाक़ रखतें हैं या आप कुछ रौशनी डालना चाहते हैं तो अपने विचार जरूर शेयर करें।  आपका अपना क्रिएटिव राईटर, महेन्दर पॉल वर्मा  एडमिन  रियल हिंदी स्टोरीज 

नन्ही परी - Little Fairy

दोस्तो, क्या आपने किसी परी से मुलाकात की है ?  अगर आपका जवाब ना है तो कोई बात नहीं, मैं आपको एक नन्ही पारी के बारे में बताता हूँ।  घबराइये नहीं, ये एक छोटी सी पर मीठी सी याद है जो मैं आपके साथ शेयर कर रहा हूँ। जब से ये नन्ही परी मेरी जिन्दगी में आई है, तब से में अपने आप को परमात्मा का प्रशाद समझने लगा हूँ।  जबकि पहले मैं कभी इतना खुशकिस्मत नहीं था। मैंने उसके लिए कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं, ज़रा ग़ोर फरमाये। एक कली सी कोमल लड़की, काँटों और फूलों से डरती। *** बोलने से वो कभी ना डरती, छुप - छुप कर आहें थी भरती। *** नाम था उसका सीधा - साधा, सूरत में थी बिलकुल राधा। *** जब से मेने उसे पाया है, मैं इस संसार का सबसे खुशनसीब व्यक्ति बन गया हूँ।  दिन भर बस यही  सोचता और कहता हूँ :- मेरा दिन - मेरी रात भी नन्ही परी।  मेरा दिल - मेरी जान भी नन्ही पारी। मेरी गरिमा है मेरा गरूर।  मेरा अरमान भी है नन्ही परी। मेरी दुनिआ - मेरा जहां भी नन्ही परी। मेरी नन्ही परी ही मेरी बेटी और बेटा  है। मेरे लिए तो मेरी नन्ही परी ही  सब कुछ है।