Skip to main content

परफैक्ट रिश्ता - The Perfect Relation

परफैक्ट रिश्ता - सुनने में तो अच्छा लगता है पर क्या सच में कोई रिश्ता परफैक्ट हो सकता है? इस सवाल का जवाब मैं आप पर छोड़ता हूँ। 

पर मेरे ख़याल में कोई रिश्ता कभी परफैक्ट नहीं हो सकता क्योंकि हर रिश्ते के दो पहलू होते हैं। 
  1. एक अच्छा - A good side of Relation
  2. एक बुरा - A bad side of Relation
अच्छे पहलू में लोग झूठ बोलते हैं, लोगो की झूठी तारीफ़ करते हैं और कई तरहं के झूठे पाखंड करते हैं। इसलिए दूसरों को अच्छे लगते हैं। 

बुरे पहलू में लोग सच बोलते हैं,  लोगो की झूठी तारीफ़ नहीं करते और उनकी ज़िन्दगी की किताब एकदम पारदर्शी होती है। पर ऐसे लोग किसी को पसंद नहीं आते। 

जो लोग बुरे पहलू में आते हैं, उनका रिश्ता कभी परफैक्ट नहीं होता जबकि होना इसके विपरीत चाहिए। क्योंकि सच बोलना ही ज़िन्दगी है। 

मैं तो बुरे पहलू में ही आता हूँ इसलिए कभी किसीको पसंद नहीं आया, ना ही कभी मेरा कोई काम किसी को अच्छा लगा। और तो और मेरी पत्नी और उसके घरवाले भी मुझे पसंद नहीं करते। उनके लिए तो सिर्फ पैसा, रुतबा ही सब कुछ है, चाहे वो किसी को झूठ बोल कर ही हासिल किया हो।  

पर मैं अपनी ज़िन्दगी से खुश हूँ। मुझे अब किसी से कोई शिकायत ही नहीं है और न ही मैं किसी को अपने ज़ख़्म दिखल सकता हूँ। 

दोस्तों ये तो है मेरी कहानी मेरी ज़ुबानी। 

आप अपने सुझाव कमेंट कर सकते है 

Comments

Popular posts from this blog

बदलते रिश्ते - The Changing Relations

बदलते रिश्ते -  एक कड़वा सच जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगा। जी हाँ, यह  सिर्फ मेरी नहीं बल्कि हम सब की है।  और जहाँ तक मेरा ख्याल है, ऐसा सिर्फ भारत में ही होता है।  क्या कभी आपने सोचा है कि आपके परिवार वाले भी आपके खिलाफ साज़िश कर सकते है।  मैं दावे के साथ कह सकता हूँ के नहीं।  पर यह सब सच है - एक कड़वा सच जो आपकी ज़िन्दगी बदल देगा और सोचने पर मज़बूर कर देगा कि क्या यही ज़िन्दगी है।  मैं हर वख्त दूसरों के बारे में ही सोचता रहा और अपनी ज़िन्दगी बर्बाद कर ली। पर सब यही कहते हैं की तूने किया है।  लोग दूसरों का दिमाग तो पढ़ लेते हैं पर मेरा दिल कोई नहीं पढ़ पाया।  अब तो मेरा दिल बस यही कहता है कि :- पंछिओं को आसमान से गिरते देखा है, अपनों के हाथों से अपनों को गिराते देखा है।  *-*-* लोग बेदर्द है जो अपने दिमाग से सोचते हैं, उम्र गुज़ार दी दिल से सोचते - सोचते, पर अफ़सोस,  मेने अपने रिश्तों को फिर भी बदलते देखा है।   *-*-* क्या ये ही ज़िन्दगी है,  कि लोग एक पल में साथ छोड़ देते हैं, बीच सफर में अपने हाथ छोड़ देते हैं, ज़िंदगी का तो पता नहीं, 

सच की कलम से - By the Pen of Truth

सच की कलम से , सुनने में तो अच्छा लगता है, पर  क्या कलम सच बोलती है? जरा सोचिए और बताइए क्या सच में कलम सच बोलती है?  आज कल तो कलम वही लिखती है जो उससे लिखवाया जाता है। और वो ही लिखती है जिससे उसको लिखवाने वाले को कुछ फायदा होता है।  क्यों मैं सच कह रहा हूँ ना? अगर हाँ तो अपने विचार मेरे साथ शेयर जरूर करें।  क्योंकि इस मुद्दे पर आपकी छोटी सी टिप्णी बहुत गहरा प्रभाव दाल सकती है। विश्वास कीजिए।  कलम बैचारी कुर्सी की मारी। शायद ये मोहावरा तो आपने सुना ही होगा। हाँ थोड़ा सा हटके जरूर है पर करता तो कलम की मजबूरी को ब्यान ही है ना।  आप को नहीं लगता के कलम अब ग़लत  हाथों में है ?  अगर आप मेरे सवालों से इत्तेफ़ाक़ रखतें हैं या आप कुछ रौशनी डालना चाहते हैं तो अपने विचार जरूर शेयर करें।  आपका अपना क्रिएटिव राईटर, महेन्दर पॉल वर्मा  एडमिन  रियल हिंदी स्टोरीज 

अलविदा - Good Bye To All

अलविदा - एक दुखी करने वाली पर सच्ची कहानी है। आप सब लोगों से निवेदन है कि यदि कोई भी व्यक्ति छोटे दिल वाला है या ज्यादा भावुक है, कृप्या इस कहानी को ना पढ़े।  क्या आप ने बाग़बान फ़िल्म देखी है? बस यह कहानी उससे 10 कदम और आगे है और ज्यादा दुखी करने वाली है। क्योंकि उसमें तो सिर्फ चारों बेटे और बहुएं ही नालायक निकलते हैं, पर इस कहानी में पूरा का पूरा परिवार और आस पास के लोग भी सेल्फिश हैं।  साड़ी कहानी सिर्फ पैसे के इर्द -गिर्द ही घूमती रहती है और इस सब में बेचारा एक व्यक्ति पिस्ता रहता है। कोई उसके बारे में नहीं सोचता बल्कि उसके किये अच्छे काम भी उनको नहीं दिखते।  मैं आप से कुछ प्रश्न करना  चाहता हूँ और अगर आप लोग इनका जवाब दे सकते है तो आपकी बड़ी कृपा होगी और मेरा कुछ दर्द भी कम हो जायेगा।